Shashtipoorti (Shashtyabdipurthi) – Vedic Significance, Rituals & Meaning
Published on in Vedic Spiritual Insights
षष्ठीपूर्ति (षष्ट्यब्दिपूर्ति / शष्ट्यभिषेकम्)
जीवन का नवस्वर्णिम प्रभात
१. प्रस्तावना
भारतीय संस्कृति जीवन को धर्म–अर्थ–काम–मोक्ष के चतुर्विध पुरुषार्थों के साथ जोड़कर देखती है। हर आयु-चरण का अपना महत्व है। शैशव, बाल्य, युवावस्था और गृहस्थाश्रम – इन सभी का फल जब ६० वर्ष की आयु पर पहुँचता है, तब व्यक्ति को जीवन का पुनर्मूल्यांकन करने का अवसर प्राप्त होता है।
षष्ठीपूर्ति वही अवसर है – जब जीवन के पहले ६० वर्षों की थकान, जिम्मेदारियाँ और अनुभवों के पश्चात मनुष्य एक नवीन उषा का स्वागत करता है। यह संस्कार केवल व्यक्तिगत न होकर पारिवारिक और सामाजिक उत्सव भी है।
२. शास्त्रीय आधार
(क) वेद
ऋग्वेद (१०.१८.१) कहता है:
“जिवेम शरदः शतम्”
– हम सौ वर्षों तक जीयें।
अथर्ववेद (१९.६७.१) में भी दीर्घायु की प्रार्थना की गई है। इससे स्पष्ट है कि वेदों में मनुष्य के शतायु जीवन की कल्पना है, और ६०वाँ वर्ष इसका मध्यबिंदु है।
(ख) उपनिषद
तैत्तिरीयोपनिषद् (३.१०) में दीर्घायु, बल और प्रज्ञा की कामना की गई है। यह कामना केवल भौतिक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक दीर्घजीवन का संकेत है।
(ग) धर्मसूत्र और स्मृतियाँ
-
मनुस्मृति (४.३५) के अनुसार, ५० वर्ष की आयु के बाद गृहस्थ धीरे-धीरे वानप्रस्थ की ओर बढ़े।
-
आपस्तम्ब धर्मसूत्र और आश्वलायन गृह्यसूत्र में दीर्घायु के लिए विशेष यज्ञों का उल्लेख है।
(घ) पुराण
-
मार्कण्डेय पुराण – ऋषि मार्कण्डेय ने महामृत्युंजय जप द्वारा काल को परास्त कर अमरत्व पाया। इस कथा के आधार पर ६० वर्ष के पश्चात महामृत्युंजय जप अनिवार्य माना जाता है।
-
भागवत पुराण (११.१७) – इसमें कहा गया है कि ५० वर्ष के बाद जीवन को धर्म और साधना में लगाना चाहिए।
-
गरुड़ पुराण – इसमें आयुष्यमंत्र और अभिषेक से आयु-वृद्धि का वर्णन है।
३. धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व
१. नवजीवन का प्रारंभ – ६०वें वर्ष को जीवन की पुनर्जन्म-रेखा माना गया है।
२. कुल–परंपरा का सम्मान – परिवारजनों द्वारा वृद्ध का अभिनंदन और सम्मान।
३. आध्यात्मिक साधना की ओर प्रवृत्ति – सांसारिक दायित्वों के बाद व्यक्ति ध्यान, जप और भक्ति के मार्ग पर अग्रसर होता है।
४. आयुष्यमंगल – आयुष्य, आरोग्य और शांति की कामना।
४. अनुष्ठान की विधि
(क) सामान्य रूपरेखा
-
संकल्प – ६० वर्ष पूर्ण करने वाले व्यक्ति और उसकी पत्नी का संकल्प।
-
गणेश पूजन और पुण्याहवाचन।
-
नवग्रह शांति एवं आयुष्य सूक्त पाठ।
-
रुद्राभिषेक और महामृत्युंजय जप।
-
हवन और पूर्णाहुति।
-
आशीर्वचन और अन्नदान।
(ख) उत्तर भारत की परंपरा
-
यहाँ नवग्रह शांति, महामृत्युंजय जप और हवन को प्रधानता दी जाती है।
-
पूजा प्रायः घर या मंदिर में संपन्न होती है।
-
बाद में भोज और अन्नदान होता है।
(ग) दक्षिण भारत की परंपरा – षष्ट्यभिषेकम्
-
पति-पत्नी दोनों मुख्य भागीदार।
-
सहस्रधारा अभिषेक (सैकड़ों कलशों से अभिषेक) विशेष महत्व रखता है।
-
वैष्णव परंपरा – सहस्रनामार्चना, सुदर्शन होम।
-
शैव परंपरा – रुद्राभिषेक और पवमान सूक्त पाठ।
-
पूजा मंदिरों में भव्य रूप से आयोजित होती है।
५. प्रमुख मंत्र और स्तोत्र
(i) महामृत्युंजय मंत्र
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥
(ii) आयुष्य सूक्त
आयुष्यमान्गृणा॑नोऽग्नेऽयुष्या॑णि पा॒हि नः।
आयु॒र्दधा॑र्यस्मे॥
(iii) रुद्राष्टाध्यायी और पवमान सूक्त
इनका पाठ अभिषेक के समय आवश्यक है।
६. पुराण कथाएँ और प्रेरणा
१. मार्कण्डेय ऋषि – भगवान शिव की कृपा से मृत्यु पर विजय।
२. च्यवन ऋषि – अश्विनीकुमारों के आयुष्यमंत्र से पुनः युवा बने।
३. दधिचि ऋषि – जिन्होंने अपनी अस्थियाँ देवताओं को दान दीं और अमरत्व पाया।
इन कथाओं से यह संदेश मिलता है कि आयु केवल वर्षों की संख्या नहीं, बल्कि साधना और सेवा की परिपूर्णता है।
७. सामाजिक और मनोवैज्ञानिक पक्ष
-
परिवार वृद्धजन के जीवनभर के योगदान का सम्मान करता है।
-
यह अवसर पीढ़ियों के बीच संवाद का माध्यम है।
-
वृद्धजन के मन में जीवन-परिवर्तन का सकारात्मक भाव आता है।
-
आधुनिक मनोविज्ञान कहता है कि इस प्रकार के संस्कार डिप्रेशन और अकेलेपन को दूर करते हैं।
८. आधुनिक जीवन में प्रासंगिकता
आज की व्यस्त जीवनशैली में षष्ठीपूर्ति:
-
पारिवारिक एकता का प्रतीक है।
-
मानसिक, सामाजिक और आध्यात्मिक पुनर्जागरण का साधन है।
-
स्वास्थ्य और योग–ध्यान के साथ संयोजन करने पर जीवन की गुणवत्ता बढ़ती है।
९. तुलनात्मक विवेचन – उत्तर बनाम दक्षिण
| पक्ष | उत्तर भारत | दक्षिण भारत (षष्ट्यभिषेकम्) |
|---|---|---|
| मुख्य पूजा | नवग्रह शांति, मृत्युंजय जप, हवन | रुद्राभिषेक, सहस्रधारा, सहस्रनाम |
| स्थान | घर, मंदिर | मंदिर (विशेषकर शिव/वैष्णव) |
| सहभागिता | परिवार और मित्र | पति-पत्नी दोनों केंद्र में |
| विशेषता | यज्ञ और हवन | सहस्र कलश अभिषेक |
१०. निष्कर्ष
षष्ठीपूर्ति केवल ६०वें जन्मदिन का उत्सव नहीं, बल्कि यह जीवन का पुनर्जन्म संस्कार है। यह व्यक्ति को स्मरण कराता है कि अब जीवन का शेष भाग साधना, सेवा और आध्यात्मिक प्रगति के लिए समर्पित होना चाहिए।
भारतीय संस्कृति ने इसे केवल जन्मदिन नहीं, बल्कि “जीवन का नवस्वर्णिम प्रभात” बनाया है – जो मनुष्य को शारीरिक, मानसिक, सामाजिक और आध्यात्मिक चारों स्तरों पर नवजीवन प्रदान करता है।
Recent Articles
- Venus Transit in Libra 2025: Vedic Astrology Predictions for All Moon Signs
- Venus's Transit of the Fixed Star Spica : 31st October 2025 : Lucky and Auspicious
- Mars Transit in Scorpio 2025 : Emotional Power & Spiritual Awakening
- The Five Sacred Days of Diwali: Mantras and Rituals from Dhanteras to Bhai Dooj
- Diwali 2025 Lakshmi Puja Muhurat | Best Timings & Vastu Directions for Homes and Businesses