Difference Between Smarta and Vaishnava Traditions – Beliefs, Worship Methods, and Philosophy
Published on in Vedic Spiritual Insights
स्मार्त और वैष्णव परंपरा का भेद — शास्त्र और इतिहास की दृष्टि से
1. भूमिका
सनातन धर्म की विविधता में अनेक उपासना-पद्धतियाँ और परंपराएँ हैं। इनमें स्मार्त और वैष्णव दो प्रमुख धारा हैं, जो यद्यपि एक ही वेद-आधारित धर्म से उत्पन्न हैं, परंतु उनकी उपासना-पद्धति, दार्शनिक दृष्टिकोण और इष्टदेव चयन में अंतर है।
वेद, उपनिषद, पुराण और आचार्यों की परंपरा इन दोनों के स्वरूप को स्पष्ट करती है।
2. 'स्मार्त' शब्द का अर्थ और उत्पत्ति
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स्मार्त शब्द संस्कृत के "स्मृति" से बना है, जिसका अर्थ है "वेदोक्त नियमों की स्मरणपूर्वक पालना"।
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स्मार्त वे होते हैं जो वेद, स्मृति, पुराण और आगम सभी को प्रमाण मानते हैं।
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मनुस्मृति (2.6) में स्मृति को वेद के साथ ही धर्म का स्रोत कहा गया है —
वेदोऽखिलो धर्ममूलं स्मृतिशीले च तद्विदाम्।
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आदि शंकराचार्य ने अद्वैत वेदांत के प्रचार के साथ पंचायतन पूजा की परंपरा स्थापित की, जिसमें शिव, विष्णु, देवी, सूर्य और गणेश — पाँचों का पूजन समान भाव से किया जाता है।
3. 'वैष्णव' शब्द का अर्थ और उत्पत्ति
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वैष्णव वे हैं जो भगवान विष्णु और उनके अवतारों को ही सर्वोच्च मानकर भक्ति करते हैं।
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भागवत पुराण (1.2.28-29) में स्पष्ट कहा गया है —
वासुदेवः परो धर्मो नान्यः परः मार्गः क्वचित्।
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वैष्णव भक्ति-धारा का विस्तार रामानुजाचार्य (विशिष्टाद्वैत), मध्वाचार्य (द्वैत), और चैतन्य महाप्रभु (अचिन्त्यभेदाभेद) जैसे महापुरुषों द्वारा हुआ।
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इनके पूजन-पद्धति में विष्णु-मूर्ति, शालिग्राम, या उनके अवतार की मूर्ति मुख्य होती है।
4. दर्शन में अंतर
स्मार्त — अद्वैत वेदांत
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"ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या जीवो ब्रह्मैव नापरः" — अद्वैत वेदांत का मूल सिद्धांत।
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सभी देवता एक ही ब्रह्म के भिन्न रूप माने जाते हैं —
श्वेताश्वतर उपनिषद (4.1):एकं सद्विप्रा बहुधा वदन्ति।
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उपासना में एकाधिक देवताओं का चयन संभव है।
वैष्णव — द्वैत/विशिष्टाद्वैत/अचिन्त्यभेदाभेद
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भगवान विष्णु ही परमेश्वर हैं, अन्य देवता उनके सेवक या अंश।
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जीव और ईश्वर का भेद (या विशिष्ट अभेद) मानकर, प्रेम-भक्ति को ही मोक्ष का साधन मानते हैं।
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गीता (9.22):
अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते।
तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्।
5. उपासना-पद्धति
| पक्ष | स्मार्त | वैष्णव |
|---|---|---|
| इष्टदेव | पंचदेव या किसी भी देवता का चयन | केवल विष्णु/कृष्ण/राम |
| पूजन शैली | वेद–स्मृति–आगम मिश्रित वैदिक पद्धति | आगम, पांचरात्र, भागवत विधि |
| मंत्र | शिव, विष्णु, देवी, सूर्य, गणेश – किसी का भी बीज मंत्र | विष्णु गायत्री, कृष्ण मंत्र, राम मंत्र |
| आचार्य | शंकराचार्य परंपरा | रामानुज, मध्व, निम्बार्क, वल्लभ, चैतन्य |
| मुक्ति मार्ग | ज्ञान + भक्ति + कर्म का संतुलन | शुद्ध भक्ति (ज्ञान व कर्म गौण) |
6. शास्त्रीय दृष्टि से समानता
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दोनों परंपराओं का आधार वेद और धर्मशास्त्र है।
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मोक्ष ही अंतिम लक्ष्य है।
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कर्म, भक्ति और ज्ञान — तीनों का महत्त्व स्वीकार है, बस अनुपात अलग है।
7. वर्तमान में प्रचलन
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स्मार्त परंपरा दक्षिण भारत (विशेषकर कर्नाटक, आंध्र, तमिलनाडु) के ब्राह्मणों में, महाराष्ट्र के चितपावन, गोवा, बंगाल के राढ़ीय ब्राह्मण, और उत्तर भारत के कुछ क्षेत्रों में प्रचलित है।
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वैष्णव परंपरा गोधरा–गुजरात, ब्रज, ओड़िशा, आंध्र, असम, बंगाल, राजस्थान आदि में अधिक फैली हुई है।
8. निष्कर्ष
स्मार्त और वैष्णव, दोनों ही सनातन धर्म की शाखाएँ हैं।
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स्मार्त दृष्टिकोण — "सर्वदेव एक ब्रह्म के रूप" — अद्वैत वेदांत की छाया में समन्वयकारी।
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वैष्णव दृष्टिकोण — "एकमात्र विष्णु ही सर्वोच्च" — भक्ति में पूर्ण एकाग्रता।
शास्त्र दोनों को धर्म मार्ग मानते हैं, बस साधना-पद्धति का चुनाव साधक की प्रवृत्ति के अनुसार होता है।
यत्र विश्वं भवत्येकनीडम् — जहाँ सम्पूर्ण विश्व एक ही ईश्वर के अधीन है, वहाँ विविध मार्ग एक ही सत्य की ओर ले जाते हैं।
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